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SBI Electoral Bonds 2024, सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को लगाई फटकार

SBI Electoral Bonds

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SBI Electoral Bonds: इलेक्टोरल बॉन्ड का मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में है, सुप्रीम कोर्ट ने इस सुनवाई के दौरान एसबीआई को फटकार लगाई जानिए क्या है पूरा मुद्दा……

SBI Electoral Bonds

SBI Electoral Bonds: इलेक्टोरल बॉन्ड को केंद्र सरकार द्वारा 2 जनवरी 2018 में लेकर लेकर आई थी। जिसमें सरकार ने घोषणा की थी, कि इस बॉन्ड के जरिए कोई भी राजनीतिक दलों को चंदा दे सकता है।

इस बॉन्ड को खरीदने वाले कोई भी भारतीय नागरिक, कंपनी, व्यापारी या कॉरपोरेशन हो सकती थी। जिसमें की स्टेट बैंक आफ इंडिया को अधिकृत बैंक के द्वार पर नामांकित किया गया। जिसके द्वारा इस बॉन्ड की खरीदारी की जा सकती थी। जिसमें शर्त रखी गई थी कि किसी भी राजनीतिक पार्टियों को यह बॉन्ड मिलने के 15 दिनों के दौरान इसको कैश करना होता था।

पूरा मुद्दा क्या है?

SBI Electoral Bonds:केंद्र सरकार ने साल 2017 में  इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा की थी और इसको जनवरी 2018 में कानूनी रूप से लागू किया गया था। सरकार के कथन अनुसार चुनावी चंदे में साफ-सुथरा धन लाने और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए इस स्कीम को लाया गया था। इस Bond को साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किया जाता था। इस बॉन्ड से चंदा उन पार्टी को दिया जा सकता था। जिन्हें लोकसभा और विधानसभा में कम से कम एक फ़ीसदी वोट मिला हो।

Supreme Court Of India-सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की वैधता को 2019 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और दिनांक 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस स्कीम को असवैधानिक करार दिया था और कोर्ट ने यह भी कहा कि इलेक्ट्रॉनिक बॉन्ड को गोपनीय रखना संविधान के अनुच्छेद 19(I) और सूचना के अधिकारों के तहत अनुचित है।

सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को दिए अपनी फैसले में एसबीआई को 12 अप्रैल 2019 से लेकर फरवरी 15 फरवरी 2024 के बीच इलेक्टोरल बॉन्ड जुड़ी जानकारी को सार्वजनिक करने के लिए कहा था।

किसने की कोर्ट में याचिका दायर

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई की। जिसमें स्टेट बैंक आफ इंडिया ने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी को साझा करने के लिए समय 30 जून तक की समय सीमा की मांग की थी और साथ ही कोर्ट ने NGO ADR की याचिका पर भी सुनवाई की जिसमें SBI के खिलाफ कोर्ट का आदेश न मानने की याचिका दायर की गई थी।

ADR ने यह आरोप लगाया था कि एसबीआई ने जानबूझकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था। कि एसबीआई को 6 मार्च तक इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी और चुनाव आयोग को 13 मार्च तक जानकारी को सार्वजनिक करने के लिए कहा गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने State Bank Of India को क्या कहा

Supreme Court Of India

SBI Electoral Bonds:सुप्रीम कोर्ट ने 12 मार्च तक जानकारी देने को कहा है और कल तक ही एसबीआई को जानकारी देनी होगी। इसके अलावा 15 मार्च को चुनाव आयोग को यह सारी जानकारियां अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध करानी होंगी। तो सुप्रीम कोर्ट ने यह भी नाराजगी जताई कि जिस तरीके से एक असिस्टेंट जनरल मैनेजर की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के आदेश में बदलाव की मांग की गई एक्सटेंशन मांगा गया। 

उस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह गंभीर विषय था और इस तरीके से इसमें याचिका दाखिल की गई। बड़ी-बड़ी दलीलें दी गई। वरिष्ठ वकील हरीश सालवे खुद मौजूद थे और उन्होंने कहा कि जो जानकारियां इलेक्टोरल बॉन्ड को खरीदने वाले और इसके अलावाइलेक्टोरल बॉन्ड को भुनाने वाले की जो जानकारियां है। वो दो अलग-अलग साइलोस में होती है, यानी कि अलग-अलग रखी हुई होती है। 

उनका मिलान करने में समय लगेगा और जो पहला समय बदलाव करके एसबीआई ने कहा कि में ये जानकारी उपलब्ध कराई जा सकती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे पूरी तरह से नकार दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में जो दलीलें हरीश सलवे की तरफ से रखी गई यानी कि एसबीआई की तरफ से जो दलीलें रखी गई। उसमें यह भी कहा जा रहा है कि चार महीने का वक्त उन्होंने मांगा और कोर्ट ने उल्टा फटकार लगाई। SBI को चार महीने का वक्त कैसे लग सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने ये पूछा कि हमारे आदेश देने का जो वक्त है। उसमें 26 दिन का वक्त बीत चुका है। आपने याचिका लगाई लेकिन इस याचिका में आपने यह जानकारी नहीं दी किआखिर आपने 26 दिनों में क्या किया। 

राजनीतिक पार्टियों को नुकसान

सीधे तौर पर देखा जाए तो राजनीतिक पार्टियों को इससे बहुत बड़ा असर होने वाला नहीं है,यह केवल एक अपवाद का विषय है। क्योंकि इलेक्टरल बॉन्ड के जरिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने चंदा लिया है। बॉन्ड खरीदने वाले, बॉन्ड की वैल्यू, बॉन्ड खरीदने की तारीख और किस पार्टी को चुनावी बॉन्ड से कितना चंदा मिला। ये सारी जानकारी एसबीआई को देनी होगी। 

लेकिन यह बताने की जरूरत नहीं की किसने किस राजनीतिक पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा दिया है।

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